बीते सप्ताह भारतीय चुनाव आयोग ने जम्मू – कश्मीर और हरियाणा में चनावो की तारीखों का एलान किया। चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद सभी पार्टियां सियासी जंग के लिए तैयार हो रही है। जम्मू – कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव करवाना एक गंभीर चुनौती हमेशा रही है। इस बार का चुनाव कई मायनों के बहुत अलग होने वाला है क्योंकि यह धारा 370 और 35A के हटने के बाद पहला चुनाव है। कश्मीर की राजनीति भारत के मुख्य भाग की राजनीति से बहुत अलग है।
कश्मीर की राजनीति में पाकिस्तान को एक फैक्टर कश्मीर के नेता ही बनाते है। बीते सोमवार को नेशनल कांफ्रेंस ने अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया जिसमें 370 और 35A की बहाली तथा पाकिस्तान के साथ बातचीत जैसे विवादास्पद पहलुओं को शामिल किया गया है। कश्मीरियत और जमुहुरियत का खुद को सच्चा परोकर बताने वाले नेता उमर अब्दुल्लाह, फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती कश्मीर को आग में झोकना चाहते है। इनकी राजनीति घाटी के विकास से खत्म न हो जाए इसका डर इनको सता रहा है। और इसी डर से ये देशद्रोही गतिविधियों को अपनी राजनीति का अंग बना रहे है। हमारे देश की राजनीति का पहला वसूल राष्ट्र हित होना चाहिए । लेकिन जमुहुरियत की आर में छिपे अलगाववादी नेता कश्मीर में लोकतंत्र के पर्व को खून की होली के पर्व में बदलना चाहते है। कश्मीर के चुनाव पर देश की नजर है जो भारतीय राजनीति का एक नया अध्याय शुरू करेगा।