हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से ही देश में बवाल मचा हुआ है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने जिस प्रकार पिछली बार अदानी समूह नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया था, और अदानी समूह उससे बाहर निकल आया था। उसे देखते हुए ऐसा लगता है की इसबार भी हिंडनबर्ग अदानी को खास नुकसान नहीं पहुंचा पायेगा। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि इन सब के बीच सेबी प्रमुख बूरी तरह फंस गई है और इससे उनकी छवि के साथ-साथ सेबी की छवि भी धूमिल हुई है।
हर राजनीतिक दल का , हर सरकार का संबंध किसी ना किसी व्यापारिक समूह से रहता है, क्योंकि यह युग पूजीवाद का युग है। व्यापारी वर्ग, पूंजीपति वर्ग, सभी अपना भला देखते है लेकिन चिंता का विषय तब बन जाता है जब देश को इनके हाथों बेचा जाने लगता है। कोई भी मीडिया समूह इस बात को नही दिखाना चाहता कि प्रत्येक दिन एक सरकारी उपक्रम बेचा जा रहा है और समाजवाद का सफाया बड़ी ही शांति से किया जा रहा है। आज सबका एक एजेंडा है अडानी को बचाना। देश को इस षडयंत्र से निकलने की आवश्यकता है।