कोलकाता रेप केस ने भारत को हिला कर रख दिया है। ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए अत्याचार ने फिर एक बार 2012 के दिल्ली निर्भया रेप केस की याद ताजा कर दी। ट्रेनी डॉक्टर के लिए इंसाफ की मांग चारों तरफ हो रही है। गुस्सा कितना बढ़ गया है यह अस्पताल पर हुए हमले से ही पता चल जाता है। आए दिन हमारे देश में कोई ना कोई बलात्कार की घटना सामने आती है और इन घटनाओं के बाद राजनीतिक बयानबाजी भी होती है। हद तब हो जाति है जब देश के प्रधानमंत्री भी इस घटना को एक राजनीतिक रूप देने का प्रयास करना प्रारंभ कर देते है। कोलकाता से कन्नौज तक की बात की जाती है, गुस्सा दिखाया जाता है,लेकिन हाथरस का नाम नहीं लिया जाता। देश की जनता को विशेष कर महिला समाज को नारी सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहिए।
हम रोजाना रेप पर किसी ना किसी नेता की टिप्पणी सुनते हैं, अच्छा लगता है कि नारी सुरक्षा के लिए सब सजग है, लेकिन वही दूसरे पल फिर एक नई खबर आती है और भारतीय समाज शर्मशार हो जाता है। कोलकाता रेप केस पर ममता बनर्जी को घेरने का प्रयास पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से किया जा रहा है। लेकिन यह सोचने वाली बात है कि आखिर कौनसी ऐसी पार्टी है जिसके सत्ता में रहते हुए रेप का मामला नहीं आया या रेप केस में कमी आई। भारतीय राजनेताओं के भाषण रेप पीड़िता के जख्म को हरा कर रहे है।उसके जिस्म को बार – बार नंगा कर रहे है। भारतीय युवा महिलाएं, युवा वर्ग इस घटना के बाद से देश के विभिन्न हिस्सों में कैंडल मार्च कर रहा है। विरोध प्रदर्शन कर रहा है। नारी सुरक्षा के लिए आंदोलन कर रहा है।
आखिर इन आंदोलनों इत्यादि का परिणाम क्या मिलता है? क्या इन घटनाओं में कमी आती है? क्या पुरुष समाज महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझना बंद करता है? सोचना होगा हर भारतीय को की कब तक रेप पिड़ीताओ के जिस्म पर ये राजनेता राजनीति करेंगे? कब तक भारत कि बेटियो की इज्जत यू ही नीलाम होती रहेगी? आखिर कब तक? शासन, प्रशासन, समाज सेवी, छात्र वर्ग, युवा समूह सभी को निर्भया के लिए लड़ना होगा, ताकि फिर कोई लड़की निर्भया न बने। भारतीय समाज को भी अब सतर्क होना होगा की गुंडो के दम पर, बलात्कारियों दम पर चलने वाली पार्टियां उनकी बच्चियों को केवल निर्भया बना सकती हैं।उन्हे कल्पना चावला, इंजीनियर, डॉक्टर, वकील या नेता नही बना सकती। सम्पूर्ण भारतीय समाज को एक स्वर में बंगाल की पिड़ीता के लिए इंसाफ मांगना चाहिए और साथ ही जो भी नेता, मंत्री, या कोई भी पिड़ीताओ की पीड़ी की राजनीति करता है तो उसको सबक सिखाना चाहिए। भारतीय समाज को यह बताना होगा कि भारत की बेतिया दुर्गा – काली है वह अपनी सुरक्षा के लिए लड़ सकती है और उनकी तरफ आंख उठाने वालो को अंधा कर सकती है। आज जरूरत है महिला समाज को की एक साथ आए, एक साथ चले, एक साथ लड़े और न्याय को स्थापित करे। बंगाल कि निर्भया पर यूं ही अगर राजनीति होती रही तो न जाने कितनी निर्भया और कितने आंदोलन होंगे।